अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025: 'सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार, समानता, सशक्तिकरण' के साथ 30वां वर्षगांठ
8 मार्च, 2025 को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का बड़ा जश्न मनाया जाएगा, जबकि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुटेरेस ने इस साल का विषय 'सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार, समानता, सशक्तिकरण' घोषित किया है। यह दिन केवल एक बार का जश्न नहीं — यह पीकिंग घोषणा और कार्य योजनाबीजिंग की 30वीं वर्षगांठ है, जिसे हिंदुस्तान टाइम्स ने 'दुनिया की सबसे आगे की और सबसे व्यापक रूप से समर्थित महिला अधिकारों की रूपरेखा' बताया है। और यहीं पर एक बात स्पष्ट है: आज का दिन केवल उपलब्धियों की गिनती नहीं, बल्कि अभी भी बकाया है।
भारत में महिलाओं के लिए क्या हो रहा है?
भारत सरकार की महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस दिन के लिए एक विशेष कार्यक्रम तैयार किया है, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का प्रमुख भाषण, केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी और अर्जुन राम मेघवाल की बैठक, और विश्व बैंक के प्रबंध निदेशक अन्ना ब्जेर्डे की उपस्थिति शामिल है। चार सत्रों में बात होगी — वित्तीय समावेशन, डिजिटल साक्षरता, एमएसएमई के लिए ऋण, और विज्ञान, प्रबंधन और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं की नेतृत्व भूमिका।
इन सबके बीच, सरकार के कुछ बड़े कार्यक्रमों को याद किया जा रहा है: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (2015), सुकन्या समृद्धि योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना — जिसमें पहले बच्चे के लिए माता को 5,000 रुपये दिए जाते हैं — और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, जिसने 20 लाख रुपये तक के बिना गिरवी रखे ऋण दिए हैं। ये सब बहुत अच्छे हैं... लेकिन क्या ये सिर्फ प्रोग्राम हैं, या वास्तविक बदलाव की शुरुआत?
लड़कियां बदलाव की कुंजी हैं
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि आज की युवा महिलाएं और किशोरियां भविष्य के लिए वह कुंजी हैं जो बंद दरवाजे खोल सकती हैं। और वो बस नाराजगी नहीं, बल्कि नेतृत्व कर रही हैं। पुणे में पहली महिला आरटीओ अर्चना गैकवाड ने कहा — 'चुनौतियों को अवसर मानो।' ये बात बहुत छोटी लग सकती है, लेकिन जब एक महिला एक ऐसे विभाग की सिर्फ तीसरी अधिकारी बन जाती है जहां पुरुषों की ताकत है, तो ये बात एक नए युग की शुरुआत है।
हर वर्ष 13 फरवरी को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है — सरोजिनी नायडू की जन्म तिथि के सम्मान में। 'भारत की बुलबुल' ने 1930 में भारतीय महिला संघ का अध्यक्ष बनकर महिलाओं के मताधिकार के लिए लड़ा। आज, उनके नाम के साथ लगातार बुलाए जाने के बावजूद, आज की लड़कियां उनके सपनों के बारे में नहीं, बल्कि उनके अधिकारों के बारे में बात कर रही हैं।
डिजिटल दुनिया में छिपा असमानता
लेकिन यहां एक बड़ा चेतावनी का संकेत है। गुटेरेस ने कहा — 'अब नए खतरे जैसे पक्षपाती एल्गोरिदम ऑनलाइन जगह में असमानता को प्रोग्राम कर रहे हैं।' यानी अब बस घर या स्कूल में नहीं, बल्कि एप्स, सोशल मीडिया और डिजिटल बैंकिंग में भी महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है। जब एक महिला ऑनलाइन लोन लेने की कोशिश करती है, तो उसकी आय का आधार उसके पति के नाम पर होता है। जब वह एक टेक स्टार्टअप के लिए फंडिंग मांगती है, तो निवेशक उसकी योग्यता के बजाय उसके शादीशुदा होने के बारे में पूछते हैं। ये तकनीक नहीं, ये पुराना पुरुषत्व है — नए रूप में।
शांति और सुरक्षा में महिलाओं की अनुपस्थिति
भारत अभी तक एक राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP) नहीं बना पाया है — जो संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 के तहत आवश्यक है। यह प्रस्ताव 2000 में बना था, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि युद्ध और संघर्ष के समय महिलाओं को समावेशित किया जाए, उनकी सुरक्षा की गारंटी दी जाए, और उन्हें शांति प्रक्रियाओं में शामिल किया जाए। लेकिन आज भी, भारतीय सुरक्षा बलों में महिलाओं की संख्या 10% से भी कम है। और जब वे शांति अभियानों में भेजी जाती हैं, तो उन्हें युद्ध के दौरान लैंगिक हिंसा के खिलाफ ट्रेनिंग नहीं दी जाती।
ये सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं — ये वास्तविक जीवन है। जब एक जम्मू-कश्मीर की महिला अपने पति के खोए हुए बेटे की तलाश में चलती है, तो कोई उसे बैठने का अवसर नहीं देता। जब एक छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिला अपने गांव में बने बांध के विरुद्ध आवाज उठाती है, तो उसे आरोप लगाया जाता है कि वह 'सामाजिक अशांति' फैला रही है।
अगला कदम क्या है?
अगले 12 महीने में देश को तीन चीजें करनी होंगी: पहला, राष्ट्रीय कार्य योजना बनानी होगी — जिसमें बजट, ट्रेनिंग और प्रशिक्षण का खर्च स्पष्ट हो। दूसरा, डिजिटल असमानता के खिलाफ एक राष्ट्रीय नीति बनानी होगी — जिसमें एल्गोरिदम के लिए लिंग संवेदनशीलता का नियम लागू हो। तीसरा — युवा महिलाओं को नेतृत्व के लिए तैयार करना होगा। न केवल स्कूलों में, बल्कि पंचायतों, कॉर्पोरेट बोर्ड और सुरक्षा बलों में।
ये सब बातें अब नहीं, बल्कि आज की जरूरत है। क्योंकि जब एक महिला बदलती है, तो पूरा परिवार बदलता है। जब एक गांव की महिला बैंक खोलती है, तो उसकी बेटी पढ़ने लगती है। जब एक लड़की अपने नाम पर जमीन दर्ज करती है, तो वह अब केवल एक बेटी नहीं, बल्कि एक अधिकारी बन जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का नारा 'For ALL Women and Girls' क्यों महत्वपूर्ण है?
इस नारे का मतलब है कि महिला अधिकार सिर्फ शहरी, शिक्षित या उच्च आय की महिलाओं तक सीमित नहीं होने चाहिए। ग्रामीण महिलाएं, आदिवासी समुदाय, लैंगिक लघुत्व, और विकलांग महिलाओं को भी समावेशित करना होगा। अन्यथा, यह बस एक नारा बन जाएगा।
भारत में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नीतियां बनाई जाती हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन नहीं होता। जैसे प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत 5,000 रुपये का भुगतान 40% महिलाओं तक नहीं पहुंच पाता। कारण? बैंक खाते नहीं होना, आधार नहीं होना, या बस इतना कि आदमी उसका खाता नियंत्रित करता है।
डिजिटल असमानता महिलाओं को कैसे प्रभावित कर रही है?
एक 2024 के अध्ययन के अनुसार, भारत में महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में 22% कम डिजिटल उपकरण हैं। यही कारण है कि ऑनलाइन बैंकिंग, ई-कॉमर्स और डिजिटल शिक्षा में उनकी भागीदारी कम है। एल्गोरिदम उन्हें नौकरी के लिए छांटते हैं, और एआई चैटबॉट्स उनके प्रश्नों को अनदेखा करते हैं।
राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP) क्यों इतनी जरूरी है?
NAP सिर्फ एक दस्तावेज नहीं, बल्कि एक नियमित जांच और जवाबदेही का तंत्र है। बिना इसके, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1325 केवल एक शब्द है। यह बताता है कि किस बजट से कौन सा प्रशिक्षण दिया जाएगा, किस बल में कितनी महिलाएं तैनात की जाएंगी, और किस राज्य में कितनी बार लैंगिक हिंसा की जांच हुई।
क्या युवा महिलाएं वाकई बदलाव ला सकती हैं?
हां। आज की 18 साल की लड़की जो टिकटॉक पर लिंग भेदभाव के खिलाफ वीडियो बना रही है, वह आज की आरटीओ अर्चना गैकवाड हो सकती है। उनकी आवाज ने पहले अपने स्कूल में लड़कों के लिए नियम बदल दिए। अगले 5 साल में, वह एक नेता बनेगी — और यही वह ताकत है जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।
अगले वर्ष तक क्या देखना है?
अगले 12 महीने में देखें कि क्या भारत ने NAP जारी किया, क्या सरकार ने डिजिटल लिंग असमानता के खिलाफ कानून बनाया, और क्या राज्यों ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत बच्चों के जन्म रिकॉर्ड की जांच शुरू की। अगर नहीं, तो 2026 का महिला दिवस फिर से एक नारे के रूप में ही रह जाएगा।