भारत-पाकिस्तान डीजीएमओ स्तर की वार्ता से तात्कालिक संघर्षविराम, अमेरिकी मध्यस्थता ने रोकी जंग

अचानक थम गई गोलियों की गूंज: डीजीएमओ स्तर की बातचीत का असर
हालात कुछ ही दिनों में बदले हैं। आधिकारिक पुष्टि के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था जब कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले का जवाब देने के लिए भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया। भारत ने इस हमले की साजिश पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों पर ठीकरा फोड़ा। पाकिस्तान ने भी फौरन 'ऑपरेशन बुन्यन-उन-मरसूज़' की घोषणा की, लेकिन उसे भारतीय सेना के तगड़े जवाब का सामना करना पड़ा।
जमीनी युद्ध, हवाई हमले और यहां तक कि समुद्री मोर्चों पर भी सैन्य हलचल बढ़ गई थी। हजारों सैनिक सीमा पर तैनात थे और आसमान में लड़ाकू विमानों की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी। सीमावर्ती गांवों में लोगों के चेहरों पर खौफ साफ दिख रहा था। इसी backdrop में दोनों देशों के डीजीएमओ—यानि सेना के संचालन महानिदेशक—सीधे संवाद पर उतरे। भारत के डीजीएमओ ने पाक counterparts से दो टूक कहा, जब तक पूरी तरह से संघर्षविराम लागू नहीं किया जाता, तब तक आगे कोई वार्ता मुमकिन नहीं है।

अमेरिकी दबाव: शांति की टेबल से जंग के मैदान तक
अमेरिका एक बार फिर दोनों पड़ोसी देशों के बीच मध्यस्थ की भूमिका में दिखा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुले तौर पर संघर्षविराम की पुष्टि की और विदेश मंत्री इशाक डार से इसकी घोषणा करवाई। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शहबाज शरीफ जैसे बड़े चेहरे भी इन डील में सीधे भी जुड़े रहे। रूबियो ने दोनों नेताओं की 'शांति प्राथमिकता' की तारीफ भी की।
मई 10 की शाम 5 बजे से सीजफायर लागू करने का फैसला लिया गया। इसमें जमीन, आसमान और समुद्री क्षेत्रों में हर तरह की सैन्य कार्रवाई रोकने का निर्देश शामिल है। अब अमेरिका की पहल पर अगली बातचीत किसी निष्पक्ष जगह पर होगी, जो शायद दोनों देशों के बीच लंबे समय से अटकी वार्ताओं के लिए नया मंच साबित हो सकता है।
भले ही तत्काल जंग टल गई हो, पर कश्मीर विवाद अब भी मुद्दों की जड़ में है—जहां दोनों देश संप्रभुता का दावा करते हैं। बेशक, नए संघर्षविराम से सीमाओं के दोनों ओर लोग कुछ राहत महसूस कर रहे हैं, लेकिन सवाल अब भी वही हैं: क्या यह शांति टिकाऊ है, या सिर्फ एक अस्थायी विराम?