ICG 2025 कोलकाता: भारत की तकनीक-चालित छलांग और ग्लास की नई भूमिका

ICG 2025 कोलकाता: भारत की तकनीक-चालित छलांग और ग्लास की नई भूमिका सित॰, 20 2025

कोलकाता के विश्वा बंग्ला कन्वेंशन सेंटर में आयोजित ICG 2025 का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने साफ कहा—भारत अब पीछा नहीं, दिशा तय कर रहा है। पांच दिनों (20-24 जनवरी 2025) के इस सम्मेलन में 550 से अधिक प्रतिनिधि शामिल हैं, जिनमें करीब 150 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और उद्योग विशेषज्ञ भी हैं। आयोजन की जिम्मेदारी CSIR-सेन्ट्रल ग्लास एंड सिरेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-CGCRI) के पास है, जो 1950 से इस क्षेत्र की देश की अग्रणी लैब रही है।

अपने संबोधन में डॉ. सिंह ने ISRO के चंद्रयान-3 की चंद्र दक्षिणी ध्रुव के पास सफल लैंडिंग और हालिया बायो-इकोनॉमी दिशा-निर्देशों का हवाला देकर कहा कि बीते दशक में तकनीक भारत की सबसे बड़ी ताकत बनी है। उनका जोर था कि 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की असली ड्राइविंग सीट तकनीक संभालेगी—और उसमें ग्लास की भूमिका केंद्र में है। उनकी टिप्पणी—“ग्लास ने सचमुच ग्लास-सीलिंग तोड़ दी है”—सम्मेलन के स्वर को तय करती दिखी।

तकनीक-चालित भारत में ग्लास की भूमिका

ग्लास अब सिर्फ खिड़कियों और बोतलों तक सीमित नहीं रहा। अंतरिक्ष मिशनों के ऑप्टिकल सिस्टम, परमाणु रिएक्टरों की शील्डिंग, फाइबर-ऑप्टिक संचार, रक्षा प्लेटफॉर्म की ट्रांसपेरेंट आर्मर, और हेल्थकेयर के लिए बायो-सिरेमिक—हर जगह इसकी मांग तेज है। डॉ. सिंह ने कहा कि यह क्षेत्र रीयूजेबिलिटी, सस्टेनेबिलिटी और वाणिज्यिक संभावनाओं के अनोखे संगम पर खड़ा है।

  • अंतरिक्ष: टेलीस्कोप मिरर, सेंसर विंडो, हीट-रेजिस्टेंट ग्लास सिरेमिक
  • परमाणु और रक्षा: रेडिएशन-शील्डिंग, बुलेट/ब्लास्ट-रेजिस्टेंट ट्रांसपेरेंट ग्लास
  • ऑप्टिक्स और संचार: हाई-एंड ऑप्टिकल ग्लास, फाइबर ऑप्टिक्स
  • ऊर्जा और निर्माण: सोलर ग्लास, ऊर्जा-कुशल ग्लेज़िंग, स्मार्ट विंडोज
  • हेल्थकेयर: बायो-सिरेमिक इम्प्लांट, डेंटल/ऑर्थोपेडिक अनुप्रयोग

भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण, सौर ऊर्जा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और ऑटोमोबाइल में तेज निवेश से स्पेशलिटी ग्लास की जरूरत बढ़ी है। सेमीकंडक्टर, ग्रीन हाइड्रोजन और क्वांटम टेक्नोलॉजी जैसे उभरते क्षेत्रों का दबाव है कि घरेलू सप्लाई-चेन मजबूत हो, ताकि हाई-परफॉर्मेंस सामग्रियों पर आयात-निर्भरता कम हो। मंत्री ने यही तर्क रखते हुए कहा कि संस्थागत अनुसंधान अब अलग-थलग नहीं चल सकता; उसे उद्योग की समस्या-परक जरूरतों के साथ जुड़ना होगा।

सम्मेलन का एजेंडा भी इसी दिशा में है—सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग, रीसाइक्लिंग, ऊर्जा-कुशल फर्नेस, 3डी प्रिंटिंग ऑफ ग्लास, और उन्नत ऑप्टिकल सामग्री जैसे विषयों पर प्रस्तुति और चर्चा। वैश्विक कांच समुदाय से प्रोफेसर हिरोयुकी इनोए (प्रेसिडेंट, इंटरनेशनल कमीशन ऑन ग्लास; यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो) और भारत की ओर से CSIR-CGCRI के निदेशक प्रो. बिक्रमजीत बसु समेत कई विशेषज्ञ मौजूद रहे, जिनकी उपस्थिति उद्योग-शिक्षा साझेदारी की वैश्विक प्रकृति को रेखांकित करती है।

अकादमी-उद्योग साझेदारी और आगे की राह

अकादमी-उद्योग साझेदारी और आगे की राह

डॉ. सिंह ने दोहराया कि विज्ञान का अंतिम लक्ष्य ‘ईज ऑफ लिविंग’ है—तकनीक तब सफल मानी जाएगी जब वह आम लोगों के काम आए। इसी सोच के साथ CSIR ने ‘वन वीक, वन थीम’ कार्यक्रम शुरू किया है, जो पहले के ‘वन वीक, वन लैब’ से आगे बढ़कर बहु-आयामी सहयोग पर फोकस करता है। इसका मकसद है कि लैबों का रिसर्च बिना देरी उद्योग और स्टार्टअप्स तक पहुंचे—टेस्टिंग-मानकीकरण से लेकर टेक-ट्रांसफर तक एक सतत पाइपलाइन बने।

CSIR-CGCRI की विरासत भी इस सहयोग मॉडल को मजबूत बनाती है। संस्थान ने देश में ऑप्टिकल ग्लास का स्वदेशी विकास, औद्योगिक कचरे से इंसुलेटिंग ब्रिक्स, रेडिएशन-शील्डिंग ग्लास और हेल्थकेयर के लिए बायो-सिरेमिक्स जैसे समाधान दिए हैं। इन उपलब्धियों का अर्थ है—क्रिटिकल टेक्नोलॉजी में स्वावलंबन, लागत में कमी और स्थानीय कौशल-परिस्थितिकी का विस्तार।

सरकार की प्राथमिकताएं—सेमिकॉन इंडिया, राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, और क्वांटम मिशन—सभी उन्नत सामग्रियों पर टिकी हैं। ग्लास और सिरेमिक की खासियत—रासायनिक स्थिरता, उच्च ताप-प्रतिरोध, और ऑप्टिकल-इलेक्ट्रिकल गुण—इन्हें इन मिशनों का मौन आधार बनाती है। उद्योग के लिए रास्ता साफ है: उच्च-शुद्धता रॉ मैटेरियल, इंडस्ट्रियल स्केल-अप, गुणवत्ता मानकों का पालन और सर्कुलरिटी के साथ ऊर्जा दक्षता।

पांच दिन चलने वाला यह सम्मेलन प्लेनरी, तकनीकी सत्र और पोस्टर प्रस्तुतियों के जरिए अगली पीढ़ी की सामग्रियों, प्रोसेस नवाचार और स्किल-बिल्डिंग पर ठोस रूपरेखा पेश करेगा। उद्देश्य यह है कि ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिस भारत की जमीन पर टिकाऊ मॉडलों में बदले—चाहे वह सोलर ग्लास के लिए कम-आयरन सैंड का इस्तेमाल हो, फर्नेस में फ्यूल स्विचिंग, या ऑप्टिकल ग्रेड ग्लास की माप-मानकीकरण क्षमता। डॉ. सिंह का संदेश स्पष्ट रहा: विज्ञान प्रयोगशाला से निकलकर बाजार, मिशन और समाज की जरूरतों में उतरे—तभी 2047 का विकास-लक्ष्य ठोस आधार पाएगा।