ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई द्वारा 'इस्लामिक उम्मा' पर भारत को उपदेश देना और अफगान शरणार्थियों की अनदेखी करना

ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई द्वारा 'इस्लामिक उम्मा' पर भारत को उपदेश देना और अफगान शरणार्थियों की अनदेखी करना

खामेनेई का उपदेश और वास्तविकता का विरोधाभास

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई इन दिनों अपनी 'इस्लामिक उम्मा' की अवधारणा पर जोर दे रहे हैं, खासकर भारत को लेकर। उन्होंने भारत की ''इस्लामिक उम्मा'' के प्रति ज़िम्मेदारी पर सवाल उठाए हैं, लेकिन ये सवाल जब साइनी ही लिए जाते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि खामेनेई के यह उपदेश पाखंड से भरे हुए हैं। खामेनेई का यह दोहरा मापदण्ड तब और भी स्पष्ट हो जाता है जब हम ईरान द्वारा अपने देश में रहने वाले लाखों अफगान शरणार्थियों के प्रति व्यवहार पर ध्यान देते हैं।

अफगान शरणार्थियों की स्थिति

ईरान में वर्तमान में करीब 3 मिलियन अफगान शरणार्थी रह रहे हैं, जो अपनी जान बचाने के लिए अपने युद्धग्रस्त देश से भागने को मजबूर हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद, ईरानी सरकार ने इन शरणार्थियों को शरण देने के बजाय उन्हें निकालने की योजना बना ली है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, ईरान ने लगभग 2 मिलियन अफगान शरणार्थियों को उनके देश वापस भेजने का कार्यक्रम तैयार किया है। यह कदम न केवल इन शरणार्थियों के प्रति बेरुखी को दर्शाता है, बल्कि खामेनेई के इस्लामिक समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता की भी पोल खोलता है।

ईरान की आंतरिक और बाहरी नीति

खामेनेई का यह विरोधाभास केवल शरणार्थियों की स्थिति तक ही सीमित नहीं है। उनकी आंतरिक और बाहरी नीति में भी कई ऐसे कदम उठाए गए हैं जो उनके संवेदनशीलता और इस्लामिक एकता के दावे को चुनौती देते हैं। ईरान में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन एक जाना-माना मुद्दा है। इसके अलावा, खाड़ी में उनके सैन्य हस्तक्षेप और अन्य देशों में हिंसक आंदोलन को समर्थन भी उनके इस्लामिक उम्मा के प्रति कथित प्रतिबद्धता के विपरीत साबित होते हैं।

अफगान शरणार्थियों की समस्याएं

अफ़गान शरणार्थियों के लिए ईरान में रहना किसी संघर्ष से कम नहीं है। न केवल इसे कानूनी मान्यता का अभाव है, बल्कि उन्हें विभाजन और भेदभाव झेलना पड़ता है। उनकी नौकरियों, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुंच बड़ी समस्याओं से घिरी होती है। इसके साथ ही, उन्हें आए दिन पुलिस और सरकारी एजेंसियों द्वारा क्रूरता भरा व्यवहार झेलना पड़ता है। इन सबके बीच, खामेनेई का 'इस्लामिक उम्मा' पर जोर देना और भारत पर उंगली उठाना उनकी कथनी और करनी के बीच का अंतर स्पष्ट कर देता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिकिया

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी ईरान के इस कदम की आलोचना की है। कई मानवाधिकार संगठनों ने इसे अमानवीय करार दिया है और कहा है कि यह शरणार्थियों के अधिकारों का खुला उल्लंघन है। संयुक्त राष्ट्र ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए ईरान से आग्रह किया है कि वह अपने फैसले की पुनः समीक्षा करे और शरणार्थियों को मजबूरन उनके देश वापस न भेजे। अफगानिस्तान में अस्थिरता और राजनीतिक असहायत्ता के कारण, शरणार्थियों की सुरक्षित वापसी अब भी एक मुश्किल मुद्दा है।

खामेनेई की नीति की आलोचना

इस संधार्भ में देखा जाए तो, खामेनेई की नीतियों और उनके उपदेशों में भयंकर विरोधाभास है। उनके द्वारा 'इस्लामिक उम्मा' का समर्थन करना मात्र एक दिखावा प्रतीत हो रहा है, जिसे वे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। भारतीय आलोचक भी इस बात को उजागर कर रहे हैं कि खामेनेई का उपदेश मात्र भारत को बदनाम करने की कोशिश है, जबकि उनके अपने देश में मुसलमान शरणार्थियों के प्रति अत्याचार किया जा रहा है।

भारत और इस्लामिक उम्मा

भारत में भी मुसलमान एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक समुदाय हैं, जिनकी सुरक्षा और कल्याण सरकार की जिम्मेदारी है। भारत भी अपने अंदरूनी मामलों को खुद सुलझाना चाहता है और खामेनेई के उपदेशों को अनदेखा करता है। भारतीय मुसलमानों की स्थिति को सुधारने के लिए कई सरकारी योजनाएं और नीतियां हैं, जो उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करती हैं।

निष्कर्ष

आखिरकार, यह स्पष्ट है कि खामेनेई का 'इस्लामिक उम्मा' के प्रति समर्पण सिर्फ उपदेशों तक ही सीमित है। उनके अपने देश में लाखों अफगान शरणार्थियों की स्थिति और उन्हें बाहर निकालने की योजना उनकी असलियत को उजागर करती है। यह सवाल उठाता है कि खामेनेई का असली मकसद क्या है और वे किसे अपने समर्थक के रूप में देखते हैं। सिर्फ भारत की आलोचना करना और अपने देश में शरणार्थियों पर अत्याचार ढाना, उनकी दोहरी नीतियों का उदाहरण है। इस स्थिति में, खामेनेई के उपदेशों पर सवाल उठाने का हक हर किसी का है, खासकर वो लोग जो उनके इस्लामिक उम्मा के समर्थन पर भरोसा करते हैं।

8 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Shiva Tyagi

    सितंबर 18, 2024 AT 23:15

    खामेनेई का ये 'इस्लामिक उम्मा' का नाटक तो बस एक धोखा है। जब वो अपने घर में लाखों अफगानों को भगा रहे हैं, तो भारत पर उंगली उठाना किस बात का है? ये लोग तो अपने आप में एक धर्म का नाम लेकर नसीहत करते हैं, लेकिन अपने ही लोगों के साथ बर्बरता करते हैं। ये नीति नहीं, राजनीति है।

  • Image placeholder

    Pallavi Khandelwal

    सितंबर 19, 2024 AT 04:15

    मैं तो बस इतना कहूंगी कि ईरान के लोग अपने घर की सफाई नहीं कर पा रहे, फिर दूसरे के घर की बात क्यों कर रहे हैं? अफगान शरणार्थी जो ईरान में रह रहे हैं, उनकी हालत देखो-बिना पहचान, बिना नौकरी, बिना भरोसा। और फिर खामेनेई भारत को उपदेश देते हैं? बस अपनी आंखें खोलो, ये सब बातें बस एक आवाज़ का बहाना है।

  • Image placeholder

    Mishal Dalal

    सितंबर 19, 2024 AT 15:22

    ये सब बातें, बस, एक, धार्मिक, राजनीति, का, उदाहरण, हैं। खामेनेई, के, इस्लामिक, उम्मा, का, दावा, बिल्कुल, फर्जी, है। उनके, अपने, देश, में, अल्पसंख्यकों, के, खिलाफ, अत्याचार, हो रहे, हैं। शरणार्थी, को, भगाना, एक, अंतर्राष्ट्रीय, अपराध, है। भारत, को, दोष, देना, बस, एक, विचलित, करने, का, तरीका, है।

  • Image placeholder

    Pradeep Talreja

    सितंबर 21, 2024 AT 05:12

    ईरान की नीति असंगत है। इस्लामिक उम्मा का नाम लेकर भारत को टारगेट करना और अपने घर में अफगानों को निकालना-ये दोहरा मापदंड नहीं, ये नैतिक विफलता है। भारत की आंतरिक बातें भारतीय लोग ही सुलझाएंगे। बाहरी शक्तियां अपने घर से शुरू करें।

  • Image placeholder

    Rahul Kaper

    सितंबर 21, 2024 AT 07:58

    अगर कोई अपने देश में शरणार्थियों के साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है, तो उसकी बात पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं। भारत के लिए ये सवाल भी नहीं है कि ईरान क्या कर रहा है। हमारी जिम्मेदारी हमारे अपने नागरिकों के प्रति है। शांति से अपना काम करो।

  • Image placeholder

    Manoranjan jha

    सितंबर 23, 2024 AT 07:57

    ईरान के अफगान शरणार्थियों के साथ व्यवहार का विवरण बहुत गंभीर है। लगभग 2 मिलियन लोगों को बलपूर्वक वापस भेजने की योजना-ये न सिर्फ नैतिक रूप से गलत है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ भी है। जब एक देश अपने नागरिकों के लिए जो दावा करता है, वही दूसरों के लिए नहीं करता, तो वह दावा बेकार है। खामेनेई का ये बयान बस एक राजनीतिक शोर है।

  • Image placeholder

    ayush kumar

    सितंबर 24, 2024 AT 09:01

    ये बातें सुनकर दिल टूट जाता है। लाखों लोग अपने घर छोड़कर भागे हैं-केवल जान बचाने के लिए। और फिर उन्हें वापस भेजने की योजना? ईरान के लोग अपने आप को इस्लाम के रक्षक मानते हैं, लेकिन इस्लाम का असली मतलब तो दया है। खामेनेई का ये नाटक नहीं, ये धोखा है। भारत को बर्बर कहने की जगह, अपने घर को ठीक करो।

  • Image placeholder

    Soham mane

    सितंबर 26, 2024 AT 03:09

    कुछ लोग बाहर की बातें करके अपनी गलतियों को छुपाने की कोशिश करते हैं। खामेनेई का ये उपदेश भी वैसा ही है। अपने देश में शरणार्थियों के साथ बर्बरता करो, फिर भारत को डांटो। बस यही चाल है। असली बात ये है कि दुनिया अब इन नाटकों को नहीं भूल रही।

एक टिप्पणी लिखें