जन सराज पार्टी की बाय‑इलेक्शन हार: प्रशांत किशोर को मिली कड़वी सच्चाई

दिसंबर 2024 को बिहार में हुए चार विधानसभा उपचुनावों ने भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय लिख दिया। चुनाव रणनीतियों के मास्टर, प्रशांत किशोर की जन सराज पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ते हुए न तो जीत हासिल की और न ही अपना नाम बनाया, क्योंकि सभी चार सीटों में उसे नाकाम होना पड़ा।
बाय‑इलेक्शन में जन सराज पार्टी का प्रदर्शन
भेजी गई चारों उम्मीदवारों में से तीन ने सुरक्षा जमा भी नहीं वापस पायी। सबसे बड़ा अंतर राष्ट्रीय गठबंधन (NDA) और नई पार्टी के बीच दिखा, जहाँ BJP ने रामगढ़ और तरारी को जीतते हुए, JDU ने बेलागंज, और हिन्दुस्तानी आम मोर्चा‑सेक्युलर (HAM‑S) ने इमामगंज जीती।
विस्तृत आँकड़े इस प्रकार रहे:
- बेलागंज – जन सराज के मोहम्मद अमजद ने 17,285 वोट करके तीसरे स्थान पर रहे; जीतने वाली JDU की मनोरा देवी ने 73,334 वोट हासिल किए।
- इमामगंज – जितेन्द्र पासवान ने 37,103 वोट (22 % कुल) के साथ तीसरे स्थान पर रहे; HAM‑S की दीपा मंज़ही ने 53,435 वोटों से जीत हासिल की।
- रामगढ़ – सुशील कुमार सिंह ने केवल 6,513 वोटों पर चौथे स्थान पर रहे; BJP के अशोक कुमार सिंह ने 62,257 वोटों से बड़ा अंतर बनाते हुए स्थान पक्का किया।
- तरारी – किरन सिंह ने 5,592 वोट garner किए, जबकि BJP के विशाल प्रशांत ने 78,564 वोटों से भारी जीत दर्ज की।
इन परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि जन सराज पार्टी ने कुल मिलाकर लगभग 10 % वोटों का हिस्सा हासिल किया, जो निराशाजनक आंकड़े के बावजूद अपेक्षाकृत उल्लेखनीय है, खासकर जब इसे पहली बार मंच पर देखा गया हो।
आगे की रणनीति और राजनीतिक रुझान
पराजय के बाद भी प्रशांत किशोर ने अपना रुख नहीं बदला। उन्होंने यह घोषणा की कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी 243 सभी सीटों पर स्वतंत्र रूप से परखेगी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका लक्ष्य केवल NDA को चुनौती देना है, न कि रजद (RJD) को।
किशोर ने RJD को “30‑वर्षीय पार्टी” कहकर उसके भीतर नहीं ताकत नहीं मिलने का इशारा किया और NDA की जीत को “चिंता का कारण” कहा। उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को “ख़त्म हुई ताकत” बताया और कहा कि JDU की बेलागंज जीत मात्र उम्मीदवार मनोरा देवी की व्यक्तिगत अपील का नतीजा थी, न कि पार्टी की सामूहिक शक्ति का।
यह बयान न केवल नई पार्टी के मेंदानी स्वभाव को दिखाते हैं, बल्कि बिहार की राजनीति के कई पहलुओं पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं – जैसे गठबंधन की स्थिरता, विकास के वादे की वास्तविकता, और ‘स्पॉइलर’ सिद्धांत की पहुँच।
जन सराज पार्टी की असफलता इस बात को भी रेखांकित करती है कि बिहार में नई धारा के लिए गहरी जमीनी स्तर की संलग्नता, स्थानीय गठबंधन और सामाजिक समीकरणों को समझना आवश्यक है। 2022‑2024 के दौरान प्रशांत किशोर द्वारा चलाए गए पादयात्रा ने कई गांवों में चर्चा पैदा की, परन्तु वह चर्चा मतों में परिवर्तित करने में अभी तक असफल रही।
भविष्य की राह में पार्टी को संभावित सहयोगियों को जोड़ना, प्रभावशाली सामाजिक समूहों को समझना और विकास की ठोस योजनाएँ पेश करना पड़ेगा, नहीं तो केवल ‘10 % वोट’ वाले आँकड़े ही उनका निरंतर अस्तित्व बनाकर रख देंगे।
इसी बीच, NDA ने अपने ताज़ा जीत को लोकतांत्रिक ताकत के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि विपक्षी पार्टियों को इस जीत को सरकार की विकास नीति की विफलता के रूप में दिखाने की कोशिश होगी। स्पष्टरूप से कहा जा सकता है कि बिहार की राजनीतिक ध्वनि यहीं समाप्त नहीं होती, बल्कि नई आवाज़ें और नए विकल्प लगातार परीक्षण में रहेंगे।