कर्नाटक में फिल्म टिकट 200 रुपये पर कैप: मल्टीप्लेक्स भी शामिल, 75-सीट प्रीमियम हॉल को छूट

कर्नाटक में फिल्म टिकट 200 रुपये पर कैप: मल्टीप्लेक्स भी शामिल, 75-सीट प्रीमियम हॉल को छूट सित॰, 16 2025

अब 200 रुपये से ज्यादा नहीं लगेगा टिकट: क्या बदला, किसे राहत

बेंगलुरु के हाई-एंड मल्टीप्लेक्स से लेकर जिलों के सिंगल-स्क्रीन तक—अब किसी भी शो का बेसिक टिकट 200 रुपये से ऊपर नहीं जाएगा। कर्नाटक सरकार ने Karnataka Cinemas (Regulation) (Amendment) Rules, 2025 के तहत राज्यभर में टिकट कीमतों पर यह ऊपरी सीमा तय कर दी है। अधिसूचना 12 सितंबर 2025 को जारी हुई और अंतिम बार आधिकारिक गजट में प्रकाशित होते ही नियम लागू माने जाएंगे।

यह कैप सभी भाषाओं की फिल्मों और सभी तरह के थिएटरों—मल्टीप्लेक्स, सिंगल-स्क्रीन, मिनी थिएटर—पर समान रूप से लागू होगा। यह रकम टैक्स से अलग है, यानी बिल में जीएसटी और अन्य अनुमत शुल्क अलग से जुड़ सकते हैं। सरकार का इरादा सीधा है: औसत दर्शक के लिए बड़े पर्दे का अनुभव दोबारा किफायती बनाना और अलग-अलग शहरों में टिकट दरों का अंतर कम करना।

एक अहम अपवाद भी रखा गया है। 75 सीट या उससे कम क्षमता वाले मल्टी-स्क्रीन सिनेमाघर, जो प्रीमियम सुविधाएं देते हैं—जैसे सीमित लग्ज़री सीटिंग, हाई-एंड प्रोजेक्शन, बुटीक अनुभव—इस 200 रुपये की सीमा से बाहर रहेंगे। सरकार का तर्क है कि ऐसे बुटीक हॉल का लागत ढांचा अलग होता है, इसलिए उनके लिए लचीलापन जरूरी है।

इस फैसले तक पहुंचने से पहले सूचना का मसौदा सार्वजनिक किया गया था और जनता व स्टेकहोल्डर्स से आपत्तियां-सुझाव आमंत्रित किए गए थे। प्राप्त राय की समीक्षा के बाद कीमतों की नई संरचना को अंतिम रूप मिला। कर्नाटक फ़िल्म चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष एम. नरसिम्हालु ने इसे “लंबे समय से लंबित” कदम बताते हुए स्वागत किया और कहा कि तय दामों से दर्शक फिर से थिएटर का रुख करेंगे।

आपके लिए इसका सीधा मतलब, और उद्योग पर असर

आपके लिए इसका सीधा मतलब, और उद्योग पर असर

अब सबसे पहले आपकी जेब का हिसाब समझिए। 200 रुपये की यह सीमा बेस प्राइस पर है। जीएसटी नियमों के हिसाब से 100 रुपये से ऊपर के टिकट पर 18% जीएसटी लगता है। यानी किसी शो का बेस प्राइस 200 है तो बिल 236 रुपये तक जा सकता है (200 + 36 जीएसटी)। अगर आप ऑनलाइन बुकिंग करते हैं तो प्लेटफॉर्म का “कन्वीनियंस फी” और सिनेमा का पार्किंग/अन्य लोकल चार्ज अलग से जुड़ सकते हैं—यह नियम केवल प्रवेश शुल्क पर लागू है, खाने-पीने की चीजों की कीमत पर नहीं।

क्या 3D, 4DX या IMAX जैसे फॉर्मेट इस कैप से बाहर हैं? अधिसूचना में “सभी थिएटर, जिनमें मल्टीप्लेक्स भी शामिल” कहा गया है। इसका मतलब, जब तक कोई हॉल 75 सीट तक की प्रीमियम श्रेणी में नहीं आता, वह भी इसी सीमा में आएगा। यानी फॉर्मेट अलग हो सकता है, पर बेस टिकट 200 रुपये से ऊपर नहीं जाएगा।

वीकेंड और प्राइम-टाइम पर क्या होगा? थिएटर अलग-अलग शो के लिए अलग बेस प्राइस रख सकते हैं, पर नई सीमा के बाद वह भी 200 रुपये से ऊपर नहीं जा सकेगा। कार्यदिवस बनाम छुट्टियों की “डायनेमिक प्राइसिंग” की गुंजाइश अब इसी छत के भीतर रहनी होगी।

शहर और कस्बों के बीच जो बड़ा रेट-गैप बन गया था, उस पर यह नीति सीधा असर डालेगी। पहले जहां बड़े मेट्रो में नई रिलीज़ पर प्रीमियम शो बहुत महंगे हो जाते थे, अब दर्शक को पहले से पता रहेगा कि बेसिक टिकट 200 से ऊपर नहीं जाएगा। इससे परिवारों के लिए वीकेंड मूवी प्लान और छात्रों के लिए मिड-वीक शो दोनों सरल होंगे।

थिएटर मालिकों के लिए यह फैसला दो धार वाली तलवार है। एक तरफ ऊपरी सीमा राजस्व पर दबाव डाल सकती है, खासकर उन परिसरों में जहां हाई-एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर और रेंटल कॉस्ट ज्यादा है। दूसरी तरफ, अपेक्षित फायदा यह है कि सीट भराव (ऑक्युपेंसी) बढ़ सकती है। ज्यादा दर्शक आने पर शो की संख्या, एफएंडबी बिक्री और ब्रांड पार्टनरशिप से होने वाली कमाई में संतुलन बन सकता है। छोटे शहरों के सिंगल-स्क्रीन के लिए, जहां पहले भी कीमतें अपेक्षाकृत कम थीं, प्रतिस्पर्धा अब कंटेंट और अनुभव पर ज्यादा होगी।

निर्माता और वितरक भी अपने गणित को री-सेट करेंगे। औसत टिकट कीमत सीमित होने से शुरुआती वीकेंड के “स्काई-हाई” दामों पर निर्भरता घटेगी और फिल्मों को लंबी दौड़ पर दांव लगाना होगा—ज्यादा शोज़, बेहतर वर्ड-ऑफ-माउथ और परिवार-फ्रेंडली प्राइसिंग के दम पर। अच्छी बात यह है कि कैप के साथ-साथ दर्शक संख्या बढ़ने पर कुल बॉक्स ऑफिस एक हद तक संतुलित रह सकता है।

उद्योग के भीतर एक चिंता यह भी है कि क्या कैप से हाई-इंवेस्टमेंट टेक्नोलॉजी—लेज़र प्रोजेक्शन, डॉल्बी एटमॉस, बड़े फॉर्मेट स्क्रीन—की रिटर्न टाइमलाइन प्रभावित होगी। यहीं पर 75-सीट वाले प्रीमियम बुटीक थिएटरों को मिली छूट एक “टेस्टिंग ग्राउंड” बन सकती है: सीमित सीट, ज्यादा अनुभव-मूल्य, और अलग कीमत—देखना होगा कि यह मॉडल किस हद तक दर्शकों को आकर्षित करता है।

लागू करने की प्रक्रिया सीधी है, पर सख्त होगी। नियम Karnataka Cinema (Control) Act, 1964 के तहत आते हैं, इसलिए लाइसेंसिंग अथॉरिटीज कीमतों की निगरानी कर सकती हैं। थिएटरों को डिस्प्ले बोर्ड और ऑनलाइन बुकिंग पेज पर नई दरें साफ-साफ दिखानी होंगी। किसी भी बदलाव के लिए अब नियमों के दायरे में रहना पड़ेगा।

यह भी साफ है कि सरकार ने इस फैसले से पहले सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया अपनाई। ऐसे मामलों में अक्सर दो धड़े बनते हैं—दर्शक जो किफायती दरों की मांग करते हैं, और प्रदर्शक जो लागत और निवेश का हवाला देते हैं। मसौदे पर आई आपत्तियों और सुझावों को देखने के बाद ही कैप को अंतिम रूप दिया गया। फिल्म चैंबर की सकारात्मक प्रतिक्रिया बताती है कि कम-से-कम उद्योग का एक बड़ा वर्ग इसे दर्शकों की वापसी के लिए मौका मान रहा है।

क्या इससे कंटेंट चुनने का तरीका बदलेगा? बहुत संभव है। जब टिकट का बेस एक सीमा में बंधा हो, तो दर्शक नए-छोटे बजट की फिल्मों को भी थिएटर में मौका देने के लिए इच्छुक होते हैं। बड़े बजट की फिल्मों को अपनी “इवेंट” वैल्यू अब मार्केटिंग और अनुभव के जरिए साबित करनी होगी—जैसे पहले दिन-प्रथम शो की रेस के अलावा स्थिर मांग बनाना।

दर्शक के नजरिए से फायदे सीधे हैं: पारदर्शी कीमत, कम सरप्राइज, और परिवार के साथ प्लानिंग आसान। एक औसत चार सदस्यीय परिवार के लिए 200 का बेस मतलब 800 का बेसिक आउटगो—टैक्स जोड़कर करीब 944—जो पहले प्रीमियम शो में अक्सर उससे काफी ऊपर चला जाता था। ऐसे छोटे-छोटे फर्क ही मूवी-गोइंग की आवृत्ति बढ़ाते हैं।

और हां, क्या पुराने ऑफर्स-मेम्बरशिप काम आएंगे? हां, पर अब थिएटर और प्लेटफॉर्म इन्हें 200 की छत के भीतर रीडिज़ाइन करेंगे—जैसे कॉम्बो ऑफर, लॉयल्टी पॉइंट, और ऑफ-पीक डिस्काउंट। आप अगर नियमित दर्शक हैं, तो आने वाले हफ्तों में ऐप्स पर नई योजनाएं दिखने लगेंगी।

अंत में एक चीज़ याद रखिए—यह नियम टिकट के प्रवेश मूल्य पर केंद्रित है। खाने-पीने की कीमतें, पार्किंग और ऑनलाइन सुविधा शुल्क अलग विषय हैं। इसका मतलब, कुल बिल अलग-अलग थिएटर और बुकिंग तरीकों में थोड़ा बदल सकता है, पर बेस लाइन अब तय है: सिनेमा टिकट का बेस 200 रुपये से ऊपर नहीं जाएगा, सिवाय उन बुटीक प्रीमियम हॉल के जो 75 सीट तक सीमित हैं।