रिचर्ड एटनबरो की फिल्म से फिर चर्चा में आए महात्मा गांधी: रिकी केज का दावा
भारत-अमेरिकी संगीतकार और तीन बार के ग्रैमी पुरस्कार विजेता रिकी केज ने हाल ही में एक बहुचर्चित बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद, पश्चिमी देशों में उनकी चर्चा लगभग समाप्त हो गई थी। केज ने यह भी बताया कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, अगले 33 वर्षों तक वे पश्चिमी दृष्टिकोण में एक भूली हुई हस्ती बन गए थे।
रिकी केज ने बताया कि यह स्थिति 1982 में बदल गई, जब सर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' का प्रीमियर हुआ। उस वक्त तक गांधी का नाम कई देशों में एक अनजान व्यक्तित्व बन चुका था। हालांकि, इस फिल्म ने महात्मा गांधी को पूरे विश्व में एक नई पहचान दिलाई और लोगों ने उन्हें फिर से शांति के प्रतीक के रूप में देखना शुरू किया।
महात्मा गांधी की संघर्षमय यात्रा और उनके अडिग उसूलों पर बनी इस फिल्म ने न केवल दर्शकों का दिल जीत लिया, बल्कि फिल्म समीक्षकों से भी खूब प्रशंसा पाई। प्रारंभ में, फिल्म को वितरण के मामले में काफी संघर्ष करना पड़ा, परन्तु जब 1983 में इसने आठ ऑस्कर पुरस्कार जीते, तो इसे वैश्विक स्तर पर बड़ी सफलता मिली।
मोदी का समर्थन
रिकी केज ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' फिल्म ने महात्मा गांधी के प्रति उत्सुकता बढ़ाई। मोदी ने यह बात एक इंटरव्यू के दौरान कही थी, जहां उन्होंने गांधी जी की वैश्विक मान्यता पर चर्चा की थी। केज ने अपने एक्स हेंडल पर लिखा कि इस फिल्म ने महात्मा गांधी के विचारों को पुनः जीवित किया और एक नई पीढ़ी को उनके असली व्यक्तित्व से परिचित कराया।
वेस्ट में गलतफहमी
हालांकि, केज इस बात से नाखुश हैं कि कई पश्चिमी लोग महात्मा गांधी को फिल्म में उनके किरदार निभाने वाले अभिनेता बेन किंग्सले से अधिक पहचानने लगे हैं। केज का मानना है कि यह एक बड़ी गलतफहमी है और गांधी का असली व्यक्तित्व इससे कहीं महान और हैं। उनके दृष्टिकोण में, फिल्म का उद्देश्य गांधी के विचारों और उनकी शिक्षाओं को सामने लाना था, न कि उन्हें एक अभिनेता के माध्यम से सीमित कर देना।
रिकी केज का_music और समाज के प्रति योगदान
रिकी केज न केवल एक प्रतिभाशाली संगीतकार हैं, बल्कि उनका समाज के प्रति भी गहरा अनुराग है। वे अपने संगीत के माध्यम से समाजिक मुद्दों को उठाते हैं और विश्व शांति के प्रति योगदान देते हैं। गांधी के बारे में उनकी भावनाएं भी यही दर्शाती हैं कि वे कितना अपने देश और उसके महान नेताओं का सम्मान करते हैं।
गांधी की विरासत
महात्मा गांधी की विरासत अभी भी जीवित है और उनके विचार और उसूल आज भी प्रासंगिक हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनके योगदान को कोई भुला नहीं सकता। गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह की नीति ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है और आज भी कई देशों में आंदोलनकारी उनके उसूलों को अपनाते हैं।
रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' ने न केवल महात्मा गांधी की जीवनी को प्रस्तुत किया, बल्कि उनकी शिक्षाओं और उसूलों को भी दर्शाया। यह ऐतिहासिक फिल्म दर्शाती है कि कैसे एक आदमी ने पूरे ब्रितानी साम्राज्य को अहिंसा के माध्यम से झुकाया और भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
गांधी के बाद का भारत
गांधी की हत्या के बाद, भारत ने एक नये युग की ओर कदम बढ़ाया। उनकी शिक्षाओं को अपनाते हुए, भारत ने अपने जनतांत्रिक संसाधनों को मजबूत किया और आर्थिक एवं सामाजिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हुआ।
महात्मा गांधी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेंगी। रिकी केज की उम्मीद है कि दुनिया उनके असली व्यक्तित्व को पहचाने और उनकी शिक्षाओं को अपनाए, जिससे समाज में शांति और भाईचारा बनाए रखा जा सके।
Sohan Chouhan
जून 1, 2024 AT 15:47ये सब फिल्म वाली बातें बस नाटक हैं। गांधी तो हमारे खून से बने थे, बेन किंग्सले के चेहरे पर नहीं। अमेरिकी फिल्में हमारी आत्मा को कैमरे में बंद कर देती हैं और फिर ऑस्कर लेकर घूमती हैं।
SHIKHAR SHRESTH
जून 1, 2024 AT 21:44मैंने फिल्म देखी थी... बहुत गहरी थी। लेकिन आज के युवाओं को गांधी के बारे में कुछ नहीं पता। इसलिए ऐसी फिल्में जरूरी हैं। बस अभिनय को नहीं, विचारों को देखना चाहिए।
amit parandkar
जून 3, 2024 AT 21:36क्या आपने कभी सोचा है कि ये फिल्म किसके लिए बनाई गई? ब्रिटिश राज के खिलाफ आंदोलन को शांति के रूप में प्रस्तुत करके... शायद वो अपनी गलतियों को भूलना चाहते थे।
Annu Kumari
जून 4, 2024 AT 19:16मुझे लगता है कि रिकी केज ने सही कहा। गांधी जी का व्यक्तित्व इतना गहरा है कि एक फिल्म उसे पूरी तरह समझाने में असमर्थ है। लेकिन फिर भी, ये फिल्म ने लोगों को जागृत किया।
haridas hs
जून 6, 2024 AT 16:58फिल्म का असली उद्देश्य तो गांधी के अहिंसावाद को उपभोक्तावादी बनाना था। अब लोग समझते हैं कि अहिंसा एक ट्रेंड है, न कि एक जीवन दर्शन। ये सब नव-उपनिवेशवाद है।
Shiva Tyagi
जून 8, 2024 AT 16:19हमारे देश के नेताओं को फिल्मों के बारे में बात करने की जरूरत नहीं। गांधी जी के लिए एक टेंपल बनाओ, एक फिल्म नहीं। ये सब बाहरी दिखावा है।
Pallavi Khandelwal
जून 8, 2024 AT 23:12मैं रो रही थी जब बेन किंग्सले गिरे... लेकिन फिर मुझे लगा, ये तो गांधी जी की आत्मा का अंत है। अब तो वो सिर्फ एक अभिनेता के चेहरे पर रह गए हैं।
Mishal Dalal
जून 10, 2024 AT 04:59गांधी जी के बारे में फिल्म बनाना एक अपमान है! हमारे नेता को बाहरी लोगों ने बनाया, फिर उन्हें ऑस्कर दिया? हमारी आत्मा को बेच दिया गया।
Pradeep Talreja
जून 11, 2024 AT 06:22फिल्म ने गांधी को विश्व के लिए प्रस्तुत किया। ये बात सच है। बाकी सब बहाने हैं।
Rahul Kaper
जून 11, 2024 AT 10:51मैं एक ग्रामीण स्कूल में पढ़ाता हूं। बच्चे अब गांधी जी के बारे में फिल्म देखकर बात करते हैं। ये छोटी शुरुआत है... लेकिन ये बहुत मायने रखती है।
Manoranjan jha
जून 12, 2024 AT 14:03गांधी जी के जीवन की एक बात जो आज भी भूल गए हैं - वो लगातार अपने विचारों को चुनौती देते रहे। फिल्म ने उनकी लचीलापन को नहीं दिखाया।
ayush kumar
जून 13, 2024 AT 19:43जब मैंने फिल्म देखी तो मुझे लगा जैसे कोई मेरे दादा को फिर से जीवित कर दिया। वो बोलते थे - 'अहिंसा ताकत है'। आज भी ये सच है।
Soham mane
जून 15, 2024 AT 09:58गांधी जी की फिल्म ने मुझे बताया कि एक आदमी कितना बदल सकता है। अगर वो कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? आज से शुरू करते हैं।
Neev Shah
जून 17, 2024 AT 01:22यहाँ तक कि एटनबरो के डायलॉग्स की लिंगुइस्टिक संरचना भी एक पोस्ट-कोलोनियल रेटोरिक का उदाहरण है - जिसमें गांधी की अहिंसा को एक एस्थेटिक रिस्पॉन्स के रूप में रिकॉन्स्ट्रक्ट किया गया है। ये फिल्म न केवल एक जीवनी है, बल्कि एक सांस्कृतिक अपहरण है।
Chandni Yadav
जून 17, 2024 AT 22:20फिल्म की सफलता का मतलब यह नहीं कि गांधी जी का वास्तविक विरासत बच गया। बल्कि यह दर्शाता है कि पश्चिम ने उन्हें अपनी भाषा में बोलने की अनुमति दे दी।
Raaz Saini
जून 19, 2024 AT 13:46सब ये फिल्म के लिए बहुत ज्यादा बन गए। लेकिन गांधी जी के बारे में असली बातें - जैसे उनके राजनीतिक गलतियाँ, उनके जाति विषयक विचार - इस फिल्म ने छिपा दिए। ये नहीं, ये एक अपराध है।
Dinesh Bhat
जून 21, 2024 AT 09:43मैंने फिल्म देखी, लेकिन फिर गांधी के अपने अखबारों को पढ़ा। फिल्म ने उनकी बातें साधारण बना दीं। असली गांधी तो बहुत जटिल थे।
Kamal Sharma
जून 21, 2024 AT 15:02मैं एक अफ्रीकी दोस्त के साथ फिल्म देख रहा था। उसने कहा - 'ये आदमी ने मुझे बताया कि अपनी आज़ादी कैसे लेनी है'। फिल्म ने विश्व को गांधी दिया - और ये बहुत बड़ी बात है।
Himanshu Kaushik
जून 22, 2024 AT 20:57गांधी जी के बारे में फिल्म देखो। उनकी जिंदगी के बारे में नहीं।