RTI अधिनियम का 20वां वर्ष: पारदर्शिता की जीत और उसकी धीमी मौत

RTI अधिनियम का 20वां वर्ष: पारदर्शिता की जीत और उसकी धीमी मौत

2025 की 12 अक्टूबर को भारत की सबसे शक्तिशाली लोकतांत्रिक कानूनों में से एक — RTI अधिनियम, 2005 — का 20वां स्थापना दिवस मनाया गया। लेकिन इस बार, जश्न की बजाय एक दुखद चुप्पी छाई हुई थी। दिल्ली के सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन (CIC) के कार्यालय में अब सिर्फ दो सदस्य हैं। एक समय था जब यहां हर साल एक बड़ी वार्षिक व्याख्यान श्रृंखला होती थी। अब वह भी बंद। यह सिर्फ एक खाली कार्यालय नहीं है — यह लोकतंत्र के एक अंग की मौत है।

जनआंदोलन से कानून तक: RTI की जन्मकथा

RTI का जन्म एक गांव के बाजार से हुआ। 1990 के दशक में, मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने राजस्थान के गांवों में लोगों को अपने निर्माण और राशन के खर्च के रिकॉर्ड दिखाने के लिए मजबूर किया। उन्होंने अपने बच्चों के लिए भी बचत की गई राशि का अनुमान लगाया — और पाया कि लगभग 70% धन चोरी हो गया था। इसी आंदोलन ने एक कानून को जन्म दिया। 2005 में, यूपीए सरकार ने, जिसकी अगुवाई मनमोहन सिंह कर रहे थे, और सोनिया गांधी के नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ने समर्थन किया, RTI अधिनियम पारित किया। यह कोई राजनीतिक चाल नहीं थी — यह लोगों की आवाज़ थी।

2019 का विधेयक: कानून का अंत

लेकिन फिर 2019 आया। पार्लियामेंट में, एक ऐसा संशोधन पारित किया गया जिसे अधिकांश विपक्षी दलों ने खारिज कर दिया। इसमें बताया गया कि सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन के सदस्यों की आय, कार्यकाल और सेवा शर्तें अब सरकार के फैसले पर निर्भर करेंगी। यह बदलाव कानून के आधार को ही तोड़ रहा था। पहले, आयुक्त एक स्वतंत्र न्यायाधीश की तरह काम करते थे। अब वे एक अधिकारी की तरह — जिनकी नियुक्ति और निकाल देने का अधिकार सरकार के पास है। इसका असर तुरंत दिखा। CIC में छह सदस्यीय टीम अब दो सदस्यों में घट गई। कुछ अपीलें तो लाखों दिनों से लटकी हुई हैं।

आंकड़े बोल रहे हैं: RTI एक्टिविस्ट्स की मौत

कानून बदला नहीं, लेकिन उसके उपयोग करने वालों के साथ बर्ताव बदल गया। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) के अनुसार, 2010 में RTI एक्टिविस्ट्स के खिलाफ 49 हमले हुए। 2011 में यह संख्या 85 हो गई। और महाराष्ट्र में — जहां सबसे ज्यादा RTI अनुरोध आते हैं — 2018 तक कम से कम 16 हत्याएं हुईं। एक जांच रिपोर्ट में बताया गया कि जिन लोगों ने बस के लिए बने बजट का पता लगाया, उन्हें गोली मार दी गई। जिन्होंने स्कूलों में खाने की गुणवत्ता की जांच की, उनका शव एक खेत में मिला। ये सिर्फ अपराध नहीं हैं। ये एक संकेत हैं।

अदालतें भी चिंतित हैं

2025 के जून में, ओडिशा हाई कोर्ट ने अपने राज्य के सूचना आयोग पर कड़ी आलोचना की। उन्होंने एक RTI अपील को खारिज कर दिया — बिना किसी तर्क या विवेक के। अदालत ने लिखा: ‘मन की अनुपस्थिति’। यह शब्द बहुत भारी है। जब एक अदालत कहती है कि किसी ने ‘मन नहीं लगाया’, तो यह तब होता है जब न्याय का अंतिम स्तंभ भी ढीला हो जाए।

एक म्यूजियम, एक आह्वान

एक म्यूजियम, एक आह्वान

लेकिन एक जगह आशा जीवित है। बेवार, राजस्थान में, दुनिया का पहला लोकतांत्रिक RTI म्यूजियम बन रहा है। यहां लोग उन दस्तावेजों को देख सकते हैं जिन्होंने एक गांव के नागरिक को अपने बाप के लिए राशन का दावा करने में मदद की। यहां एक बच्ची का चित्र है जिसने RTI के जरिए अपने स्कूल के लिए बिजली लाई। यह म्यूजियम किसी का यादगार नहीं है — यह एक आह्वान है। यह कहता है: ‘हम याद कर रहे हैं। हम याद रखेंगे।’

राजनीति और भविष्य

के सी वेणुगोपाल, कांग्रेस के सामान्य सचिव, कहते हैं: ‘RTI अधिनियम का नुकसान लोकतंत्र के नुकसान के बराबर है।’ उनका दावा है कि डिजिटल पर्सनल डेटा संरक्षण अधिनियम और RTI के छूट खंडों का दुरुपयोग करके सरकार अब किसी भी जानकारी को छिपा सकती है। लेकिन यह सिर्फ राजनीति का मुद्दा नहीं है। यह एक अधिकार है। एक ऐसा अधिकार जो आम आदमी को सरकार के सामने खड़ा करता है।

अगले साल, जब RTI का 21वां वर्ष होगा, तो यह सवाल उठेगा: क्या हम इसे बचा पाएंगे? या फिर, यह भी एक ऐसा कानून बन जाएगा जिसकी जानकारी केवल अर्काइव में मिलेगी?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

RTI अधिनियम के बारे में लोगों को क्या भूल जाने का खतरा है?

लोगों को यह भूल जाने का खतरा है कि RTI सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि एक जीवित साधन है जिसके जरिए आम नागरिक सरकारी भ्रष्टाचार का पता लगा सकता है। जब CIC के सदस्य खाली हो जाते हैं और अपीलें लंबित रहती हैं, तो लोगों को लगने लगता है कि यह सिर्फ एक शब्द है। लेकिन जब कोई एक्टिविस्ट अपने गांव के निर्माण बजट का बयान मांगता है और उसे मिल जाता है — तो यह अधिकार फिर से जीवित हो जाता है।

2019 के संशोधन ने RTI को कैसे कमजोर किया?

2019 के संशोधन ने आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तों को सरकार के नियंत्रण में ले लिया। अब एक आयुक्त को बर्खास्त किया जा सकता है या उसका वेतन कम किया जा सकता है — बिना किसी न्यायिक समीक्षा के। यह उस स्वतंत्रता को खत्म कर देता है जिसके बिना आयोग कानून का अर्थ नहीं रखता। अब आयुक्त न्यायाधीश नहीं, बल्कि एक सरकारी अधिकारी बन गए हैं।

महाराष्ट्र में RTI एक्टिविस्ट्स की हत्याओं का क्या कारण है?

महाराष्ट्र में RTI अनुरोधों की संख्या सबसे ज्यादा है — लेकिन उनकी जांच करने वाले अधिकारी भी सबसे कम हैं। जब कोई आम आदमी एक बड़े निर्माण प्रोजेक्ट का बजट चुनौती देता है, तो वह एक बड़ी राजनीतिक-व्यावसायिक चक्रव्यूह के सामने आ जाता है। इन हत्याओं का मकसद डर फैलाना है। जब लोग डर जाएंगे, तो कोई नहीं पूछेगा। और तब भ्रष्टाचार बिना किसी बाधा के चलता रहेगा।

क्या अब RTI अधिनियम को बचाया जा सकता है?

हां, लेकिन इसके लिए तीन चीजें जरूरी हैं: पहला, सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन की पूरी संख्या तुरंत भरी जाए। दूसरा, 2019 के संशोधन को वापस लिया जाए। तीसरा, आयुक्तों को न्यायिक स्वतंत्रता दी जाए — जैसे उन्हें 2005 में दी गई थी। यह सिर्फ एक कानून नहीं, यह एक जीवित लोकतंत्र की जड़ है।

RTI म्यूजियम क्यों महत्वपूर्ण है?

यह म्यूजियम सिर्फ इतिहास नहीं दिखाता — यह भविष्य के लिए एक आह्वान है। यहां लोग उन दस्तावेजों को देखते हैं जिन्होंने एक बच्चे को दवा दिलाई, एक बूढ़े आदमी को बैंक खाता दिलाया। यह बताता है कि जब लोग जाग जाते हैं, तो सरकार भी जाग जाती है। यह म्यूजियम एक डर के बजाय एक आशा का स्मारक है।

आम नागरिक अब RTI का उपयोग कैसे कर सकता है?

अभी भी RTI अनुरोध करना संभव है। आप ऑनलाइन या पत्र द्वारा किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी मांग सकते हैं — चाहे वह स्कूल का बजट हो या राशन कार्ड का स्टेटस। लेकिन अब यह ज्यादा खतरनाक है। इसलिए अपने अनुरोध को दस्तावेज करें, दोस्तों के साथ शेयर करें, और अगर जवाब न मिले तो उसे सोशल मीडिया पर जारी करें। जानकारी का अधिकार अभी भी आपके पास है — बस इसे डर के बजाय जोश के साथ इस्तेमाल करें।

15 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Dinesh Kumar

    नवंबर 5, 2025 AT 05:48

    ये RTI अधिनियम तो हमारी जिंदगी का दूसरा सांस था! अब देखो क्या हुआ? एक तरफ बच्चे स्कूलों में बिजली के लिए लड़ रहे हैं, दूसरी तरफ CIC के ऑफिस में धूल जम रही है! जब तक हम खुद जाग नहीं जाते, तब तक कोई हमारी आवाज़ नहीं सुनेगा। अब नहीं बोलोगे? तो फिर क्या बोलने का मतलब? हर एक अनुरोध एक लड़ाई है - और अब तो हमें लड़ना ही होगा!

  • Image placeholder

    Srujana Oruganti

    नवंबर 6, 2025 AT 21:24

    बस इतना ही? इतनी लंबी पोस्ट और इतना कुछ नहीं कहा। जिसने लिखा वो शायद खुद भी नहीं जानता कि RTI कैसे काम करता है। इसका कोई असली असर नहीं है। सब बस ड्रामा कर रहे हैं।

  • Image placeholder

    Rahul Kumar

    नवंबर 7, 2025 AT 06:39

    अरे भाई, ये सब तो मैंने अपने गांव में देखा है। एक दिन मैंने अपने बाप के लिए राशन कार्ड का रिकॉर्ड मांगा था - तो वो ऑफिसर बोला, 'यार भाई, ये बात तुम नहीं पूछोगे तो बेहतर है।' मैंने तो बस चुपचाप वापस आ गया। अब लगता है मैंने गलत नहीं किया।

  • Image placeholder

    Shreya Prasad

    नवंबर 8, 2025 AT 10:06

    इस पोस्ट में दिए गए तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। RTI अधिनियम का निर्माण जनता की आवाज़ से हुआ था, और इसका धीरे-धीरे निर्मूलन लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है। सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों के प्रति हिंसा और अनुचित नियंत्रण एक अपराध है, न कि नीति। यह विषय राष्ट्रीय स्तर पर बहस के लिए तैयार है।

  • Image placeholder

    Nithya ramani

    नवंबर 9, 2025 AT 04:37

    हम सब इसे भूल रहे हैं। RTI कोई कानून नहीं, ये तो हमारा अधिकार है। मैंने पिछले साल अपने स्कूल के बजट के बारे में जानकारी मांगी थी - जवाब आया था। और फिर भी बहुत से लोग डर रहे हैं। बस एक फॉर्म भरो। बस एक बार पूछो। ये आपका अधिकार है।

  • Image placeholder

    anil kumar

    नवंबर 10, 2025 AT 07:47

    इस देश में जब एक आदमी अपने बाप के लिए राशन कार्ड चाहता है, तो उसे डर लगता है। जब एक बच्ची स्कूल के लिए बिजली मांगती है, तो उसका नाम एक रिपोर्ट में आता है। ये क्या है? ये लोकतंत्र नहीं, ये एक बड़ा शिकंजा है। जिसने इसे बनाया, वो अब उसे मरवा रहा है। और हम सब चुप हैं। शायद हम डर गए हैं। या शायद हम भूल गए कि एक दिन हम भी वही आदमी थे जिसने राशन कार्ड के लिए लड़ा था।

  • Image placeholder

    shubham jain

    नवंबर 12, 2025 AT 02:55

    2019 के संशोधन के बाद RTI का असली अर्थ खत्म हो गया। आयुक्तों की नियुक्ति सरकार के हाथ में है - यह अवैध है। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में स्पष्ट किया था कि आयोग स्वतंत्र होना चाहिए। इसे वापस लाना जरूरी है। बाकी सब बस भावुक बकवास है।

  • Image placeholder

    shivam sharma

    नवंबर 13, 2025 AT 14:19

    ये सब लोग जो RTI के लिए लड़ रहे हैं वो विदेशी फंड्स से पैसे लेते हैं। असली भारतीय इस बारे में क्यों बात नहीं करते? जब तक देश के खिलाफ बात नहीं करोगे तब तक ये लोग रुकेंगे नहीं। RTI तो हमारा कानून है, लेकिन इसे बर्बाद करने वाले वो हैं जो बाहर से आकर हमारे देश को बदनाम कर रहे हैं।

  • Image placeholder

    Sanjay Gandhi

    नवंबर 15, 2025 AT 08:09

    मैं राजस्थान का आदमी हूं। बेवार का ये म्यूजियम मैंने खुद देखा है। वहां एक बच्ची का चित्र है - जिसने RTI से अपने स्कूल के लिए बिजली लाई। उसकी आंखों में वो चमक थी जो आजकल किसी भी नेता में नहीं है। ये म्यूजियम किसी का यादगार नहीं, ये हमारी आत्मा का दर्पण है। अगर ये म्यूजियम बंद हो गया तो हम सब मर चुके होंगे।

  • Image placeholder

    fatima mohsen

    नवंबर 15, 2025 AT 16:44

    ये सब लोग अपने घर के बाहर बात कर रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा कि RTI के जरिए कितने भ्रष्ट अधिकारी निकाले गए? उन्हें अपने आप खत्म करना चाहिए। अब इन एक्टिविस्ट्स की हत्याओं का जिम्मेदार कौन है? वो जो इन्हें लोगों के बीच घुला रहे हैं। ये देश के खिलाफ आंदोलन है।

  • Image placeholder

    Pranav s

    नवंबर 16, 2025 AT 15:30

    मैंने भी RTI लगाया था - तो बताया कि डेटा नहीं है। अब मैं भी मान गया कि ये सब बकवास है। अगर सरकार चाहे तो कुछ भी छिपा सकती है। तो फिर ये अधिकार क्या करता है?

  • Image placeholder

    Ali Zeeshan Javed

    नवंबर 17, 2025 AT 06:48

    मैं एक मुस्लिम आदमी हूं। मैंने अपने बेटे के लिए स्कूल में छात्रवृत्ति के लिए RTI लगाया। जवाब मिला। अब भी मैं लगाता हूं। ये कानून किसी का नहीं, ये हर भारतीय का है। चाहे आप हिंदू हों, मुस्लिम हों, ईसाई हों - ये अधिकार आपका है। इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।

  • Image placeholder

    Žééshañ Khan

    नवंबर 17, 2025 AT 07:32

    प्राचीन भारतीय विचारधारा में जनता की जानकारी का अधिकार एक नीतिगत आधार था। इसके विरुद्ध आधुनिक राज्य का अधिकार अवैध है। विधान के अनुसार, आयुक्तों की स्वतंत्रता अनिवार्य है। इस विधेयक का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के खिलाफ है। अदालतों को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।

  • Image placeholder

    ritesh srivastav

    नवंबर 18, 2025 AT 16:05

    ये सब लोग बस अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए इसे बढ़ा रहे हैं। RTI का दुरुपयोग हो रहा है। लोग बेकार की जानकारी मांग रहे हैं। अब तो एक आदमी अपने बाप के बैंक खाते का बयान मांग रहा है। ये लोग देश को बर्बाद कर रहे हैं।

  • Image placeholder

    sumit dhamija

    नवंबर 20, 2025 AT 08:14

    मैं एक राजकीय कर्मचारी हूं। मैंने इस कानून के जरिए अपने बच्चे के लिए स्कूल का बजट जाना। मैंने अपने दोस्तों को भी सिखाया। ये अधिकार हमारे लिए नहीं, ये हमारे बच्चों के लिए है। अगर हम इसे छोड़ देंगे तो वो क्या सीखेंगे? कि जब भी कुछ गलत हो, तो चुप रहो?

एक टिप्पणी लिखें