आदिवासी अधिकार – क्या है और क्यों जरूरी?
जब हम बात आदिवासी अधिकारों की करते हैं तो इसका मतलब सिर्फ जमीन नहीं होता। यह उन लोगों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सुरक्षा है जो हमारे देश के जंगल‑परिसर में रहते आए हैं. अगर इनका सम्मान न हो तो उनका जीवन कठिन हो जाता है.
आदिवासियों को संविधान ने कई जगहों पर विशेष संरक्षण दिया है. सबसे प्रमुख प्रावधन अनुच्छेद 366(25) और अनुसूची II के तहत आते हैं. ये अधिकार उन्हें अपनी पारंपरिक भूमि, जल स्रोत और पौराणिक स्थलों से जोड़े रखते हैं. बिना इनकी सुरक्षा के विकास‑परियोजनाओं को आगे बढ़ाना अनैतिक माना जाता है.
मुख्य कानून और संवैधानिक प्रावधन
1992 में "फॉरेस्ट राइट्स एक्ट" (एफआरए) पारित हुआ. इस एक्ट के तहत आदिवासी समुदाय को अपने पूर्वजों से मिली जंगल की जमीन पर अधिकार मिला। उनका दावा तब तक मान्य रहता जब तक वह भूमि बेतरतीब नहीं ली जाती या सरकार ने उचित मुआवजा नहीं दिया.
एफआरए में तीन मुख्य लाभ हैं: पहला, पारंपरिक भूमि पर कब्ज़ा (क्लेम); दूसरा, वन संसाधनों का उपयोग; तीसरा, स्व-शासन के लिए पंचायत (जनजाती पंक्त). इनका सही प्रयोग करने से विकास और संरक्षण दोनों संभव होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार आदिवासियों के अधिकारों को सुदृढ़ किया है. 2006 में "बेंगलुरु बनाम कर्नाटक राज्य" केस में न्यायालय ने कहा कि बिना उचित प्रक्रिया के जमीन का अधिग्रहण असंवैधानिक है. ऐसे फैसले स्थानीय लोगों को कानूनी शक्ति देते हैं.
वर्तमान मुद्दे और समाचार
आजकल आदिवासी अधिकारों पर कई नई खबरें आती रहती हैं. कुछ राज्य सरकारें बुनियादी सुविधाओं के लिये जंगल‑परिसर में बड़े प्रोजेक्ट शुरू कर रही हैं, जिससे स्थानीय जनजाती लोगों की चिंता बढ़ी है. हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया गया कि मध्य प्रदेश में 12 करोड़ वर्ग मीटर जमीन पर खनन कार्य शुरू होने वाले थे, लेकिन आदिवासी समुदाय ने न्यायालय में अपील करके उसे रोका.
दूसरी तरफ, कई NGOs और सामाजिक संगठनों ने अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए हैं. उन्होंने बताया कि अगर आप अपने गांव में रहते हैं तो आपको फॉरेस्ट राइट्स एक्ट की प्रक्रिया समझनी चाहिए: जमीन का सर्वेक्षण, दस्तावेज़ जमा करना और सरकारी अनुमोदन लेना.
अगर आप खुद भी इन अधिकारों को लागू कराना चाहते हैं, तो सबसे पहले स्थानीय जनजाती पंक्त में शामिल हों. वहां से आपको कानूनी सलाह, विशेषज्ञ वकीलों की मदद और आवश्यक कागजी कार्रवाई मिल सकती है. याद रखें, आपका छोटा कदम बड़े परिवर्तन का हिस्सा बन सकता है.
आदिवासी अधिकार सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि भारत के विविध संस्कृति को संरक्षित रखने का तरीका भी हैं. जब इनका सम्मान होता है तो न केवल जंगल बचते हैं, बल्कि सामाजिक समरसता भी बढ़ती है. इसलिए हर नागरिक को चाहिए कि वह इन अधिकारों की जानकारी रखे और जरूरत पड़ने पर समर्थन करे.

लिडिया थॉर्प द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद, एक सार्वजनिक समारोह से किंग चार्ल्स की तस्वीर हटा दी गई। यह विरोध, आदिवासी अधिकारों और एक संधि की उनकी मांगों को लेकर था। इस घटना ने ब्रिटिश राजशाही और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के बीच असंतोष के इतिहास को उजागर किया है। यह मुद्दा आदिवासी पहचान की मान्यता और समायोजन की मांगों के संदर्भ में संवेदनशील बना हुआ है।
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