बकरीद 2024: इस दिन क्यों दी जाती है पशु बलि?

बकरीद 2024: इस दिन क्यों दी जाती है पशु बलि?

ईद अल-अधा का महत्व और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

ईद अल-अधा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, इस्लामिक कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्यौहार इस्लामिक दुनिया में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और इसका महत्व पैगंबर इब्राहीम की उस कहानी में छिपा है जब उन्होंने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे इस्माइल की बलि देने की तैयारी की थी। इस्माइल की बलि उनके अड़िग विश्वास और अल्लाह के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है।

यह बलिदान की परंपरा पैगंबर मुहम्मद से सैकड़ों साल पहले की है। धार्मिक विद्वान मौलाना मोहम्मद अरिफ के अनुसार, पहली बलि आदम के समय में हुई थी, जो पैगंबर मुहम्मद से लगभग 2500 साल पहले जीते थे। आदम के दोनों पुत्र, काबिल और हाबिल, ने एक ही स्त्री से विवाह करने के लिए बलि दी थी। काबिल, जो एक कृषक था, ने अपनी फसल से बलि दी, लेकिन उसकी बलि अस्वीकार कर दी गई, जिससे उसने अपने भाई हाबिल की हत्या कर दी।

बलि का महत्व

ईद अल-अधा में बलि का उद्देश्य केवल पशु का बलिदान देना नहीं है, बल्कि उसके पीछे की नीयत और प्रेरणा है। कुरान में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बलि का असली महत्व बलिदान की क्रिया में नहीं, बल्कि इसके पीछे की धर्मपरायणता और इरादा में है। इस प्रकार, बलिदान का मुख्य उद्देश्य अल्लाह के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण को प्रदर्शित करना है।

हज यात्रा और ईद अल-अधा

हज यात्रा और ईद अल-अधा

ईद अल-अधा के समय पर हज की यात्रा भी विशेष महत्व रखती है। प्रत्येक साल, लाखों मुसलमान मक्का और मदीना की पवित्र नगरों में हज के लिए जुटते हैं। हज ईद अल-अधा से ठीक पहले संपन्न होता है और मुसलमानों के लिए जीवन में एक बार अनिवार्य तीर्थयात्रा है। इस साल, हज यात्रियों के लिए शनिवार का दिन विशेष था, जब वे इन पवित्र स्थलों पर इकट्ठा होकर अपने धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था का प्रदर्शन करते हैं।

बकरीद की प्रथाएँ

ईद अल-अधा का मुख्य आकर्षण पशु बलि की परंपरा है। आमतौर पर एक बकरी, भेड़, गाय या ऊँट की बलि दी जाती है, जिसे 'कुर्बानी' कहते हैं। बलि का मांस तीन भागों में बाँटा जाता है: एक हिस्सा परिवार के लिए, दूसरा हिस्सा मित्रों और पड़ोसियों के लिए, और तीसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए। इस प्रकार, यह त्योहार सहयोग, समानता और सामाजिक न्याय का सन्देश देता है।

विशेष प्रसंग: देवबंदी के बाजार में अद्वितीय बकरी

विशेष प्रसंग: देवबंदी के बाजार में अद्वितीय बकरी

हर साल, बलि के जानवरों का बाजार विशेष आकर्षण का केंद्र बनता है। इस वर्ष मुम्बई के देओनार कसाईखाने में एक विशेष बकरी देखी गई, जिसके शरीर पर 'अल्लाह' और 'पैगंबर मुहम्मद' के उल्लेख का चिन्ह था। इस अद्वितीय बकरी की कीमत यहाँ 51 लाख रुपये लगाई गई, जो इसकी धार्मिक महत्ता और अनोखेपन को दर्शाते हैं।

अंततः, ईद अल-अधा का उद्देश्य धार्मिक विश्वास को मजबूत करना और समाज में समानता और भाईचारे को प्रोत्साहित करना है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि असली बलि हमारे आंतरिक विश्वास और हमारे कृत्यों की शुद्धता में निहित है।

15 टिप्पणि

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    Sohan Chouhan

    जून 17, 2024 AT 05:25
    ये सब धार्मिक बकवास अभी भी चल रही है? बकरी को मारकर अल्लाह को खुश करने की कोशिश? बस एक जानवर की जान ले लो और सो जाओ। इंसानियत क्या है ये समझो।
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    SHIKHAR SHRESTH

    जून 17, 2024 AT 21:58
    बहुत अच्छा लिखा है... लेकिन क्या हम इस बलि के बारे में इतना ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, जबकि असली बलि तो हमारे अहंकार, लालच और घृणा की है? कुरान भी कहता है, 'उनका मांस और रक्त अल्लाह तक नहीं पहुँचता, बल्कि तुम्हारी तकवा पहुँचती है।'
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    amit parandkar

    जून 19, 2024 AT 03:31
    क्या आपने कभी सोचा है कि ये बकरी जिस पर 'अल्लाह' लिखा है... वो किसी ने बनवाया है? ये सब एक बड़ा साजिश है... जानवरों को बेचकर लोग अपनी शक्ति दिखाते हैं... और आप सब उनके नंबर पर चल रहे हैं... ये जानवर जिंदा हैं, ये भी अल्लाह की रचना हैं... ये सब नियंत्रण का खेल है...
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    Annu Kumari

    जून 19, 2024 AT 03:53
    मुझे लगता है कि ये त्योहार असल में बहुत सुंदर है... जब आप गरीबों को खाना देते हैं, तो वो बस एक जानवर का मांस नहीं, बल्कि एक आशा का पैकेट होता है... मैंने अपने गाँव में देखा है, जब एक गरीब परिवार को पहली बार गोश्त मिला, तो उनकी आँखों में आँसू थे... ये बलि नहीं, ये दान है।
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    haridas hs

    जून 19, 2024 AT 11:38
    इस्लामिक शरीअत के अनुसार, कुर्बानी की शर्तें अत्यंत सख्त हैं। जानवर की उम्र, स्वास्थ्य, और बलि के तरीके का अध्ययन अल्लाह के आदेशों के अनुरूप होना चाहिए। यहाँ वर्णित बकरी की कीमत 51 लाख रुपये होना एक अनैतिक अतिक्रमण है, जो धार्मिक अवधारणा के विरुद्ध है। बलि का उद्देश्य वित्तीय प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि अध्यात्मिक शुद्धता है।
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    Shiva Tyagi

    जून 19, 2024 AT 22:59
    इस देश में जो लोग बकरीद पर बकरी मारते हैं, वो भारत के असली राष्ट्रीय धर्म को नहीं समझते। हमारे वैदिक संस्कृति में जानवरों की पूजा होती थी, न कि मारना। ये सब विदेशी आयातित धर्म हैं। जब तक हम अपनी जड़ों को नहीं छूएंगे, तब तक ये बकरीद चलती रहेगी।
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    Pallavi Khandelwal

    जून 20, 2024 AT 14:16
    मैंने एक बार एक बकरी को बेचते वक्त देखा था... उसकी आँखें... वो आँखें... जैसे वो जानती हो कि आज उसका अंत है... उसके आँखों में एक शांति थी... जैसे वो समझ गई हो कि ये अपनी मौत के लिए नहीं, बल्कि दूसरों की जिंदगी के लिए है... अब मैं रो रही हूँ... अब मैं बस रो रही हूँ...
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    Mishal Dalal

    जून 21, 2024 AT 12:32
    ये सब बकरीद का धर्म है, लेकिन हमारे देश में बच्चों को शिक्षा नहीं मिल रही। हमारी सरकार बकरी के लिए 1000 करोड़ खर्च कर रही है, लेकिन स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं। ये धर्म का नाम लेकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। असली बलि तो वो है जब तुम अपने बच्चे को पढ़ाओ।
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    Pradeep Talreja

    जून 22, 2024 AT 20:08
    कुरान में लिखा है। बलि का मतलब जानवर मारना नहीं। बल्कि अहंकार को मारना है। इसलिए ये बकरी का बाजार और 51 लाख की बकरी सब गलत है। बलि का मतलब अपनी लालच को बंद करना है।
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    Rahul Kaper

    जून 23, 2024 AT 03:41
    अगर कोई बकरी जिस पर 'अल्लाह' लिखा है, उसे बेच रहा है, तो उसकी बलि तो बहुत अच्छी होगी... लेकिन उस बकरी के लिए जिसे बेचने के बाद उसे घर ले जाना है... उसके लिए तो बस एक छोटी सी जगह चाहिए... अगर आप उस बकरी को घर ले जाएंगे, तो आप उसके लिए एक नाम भी रख सकते हैं... शायद उसका नाम 'अमन' हो जाए... और फिर उसकी बलि करें... तो वो बलि असली होगी।
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    Manoranjan jha

    जून 23, 2024 AT 09:48
    बलि के बारे में जो बातें कही गई हैं, वो सही हैं। लेकिन एक बात भूल गए: ये बलि देने का तरीका भी धर्मशास्त्र के अनुसार होना चाहिए। जानवर को धीरे से और बिना दर्द के मारना चाहिए। अगर ये नहीं होता, तो ये बलि नहीं, बल्कि हत्या है। और जब आप गरीबों को उसका मांस देते हैं, तो वो बस एक खाने का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक आदर का भाव है।
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    ayush kumar

    जून 24, 2024 AT 00:00
    मैंने अपने दादा को बकरीद के दिन बकरी की बलि देते देखा था... वो बहुत धीरे से बांधते थे... और फिर उन्होंने बकरी के कान में बात की... जैसे कह रहे हों... 'मैं तुम्हारे लिए आज ये कर रहा हूँ'... उसके बाद वो रो गए... मैंने तब समझा कि बलि का मतलब नहीं होता जब तक तुम उसकी आत्मा को नहीं समझते... वो बकरी अब तक मेरे सपनों में आती है...
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    Soham mane

    जून 25, 2024 AT 06:19
    ये त्योहार हमें याद दिलाता है कि हम क्या दे सकते हैं... न कि क्या ले सकते हैं। जब तुम एक गरीब को खाना देते हो, तो तुम अपने अहंकार को भी दे देते हो। ये बकरीद नहीं, ये इंसानियत है। बस इतना ही चाहिए।
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    Neev Shah

    जून 25, 2024 AT 10:39
    इस बकरी की कीमत 51 लाख रुपये? ये किसी राजा की बकरी है? ये सब एक बड़ा धार्मिक लक्जरी गुड्स है। इस्लाम तो अपने आप में एक सामाजिक न्याय का धर्म है, लेकिन अब ये धर्म एक बाजार का उत्पाद बन गया है। ये बकरी जिस पर 'अल्लाह' लिखा है, वो अल्लाह की नहीं, बल्कि एक धोखेबाज कसाई की बकरी है।
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    Sohan Chouhan

    जून 25, 2024 AT 15:37
    तुम सब बकरी के बारे में इतना बहस कर रहे हो... लेकिन जब तुम्हारी बेटी बीमार हो जाए, तो क्या तुम उसके लिए एक बकरी मारोगे? नहीं... तुम उसके लिए एक डॉक्टर बुलाओगे। तो ये सब बकरीद क्या है? बस एक धार्मिक नाटक।

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