गांधी जयंती – महात्मा गांधी का अहिंसात्मक संदेश

जब गांधी जयंती, 10 अक्टूबर को मनाया जाने वाला वह राष्ट्रीय अवकाश है जो अहिंसा, सत्याग्रह और स्वतंत्रता संघर्ष को श्रद्धांजलि देता है. Also known as गांधी दिवस, it reminds us of the values that shaped modern India. इसी उत्सव की आत्मा को समझने के लिए हमें महात्मा गांधी, स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता, अहिंसा और सत्याग्रह के प्रतीक की विचारधारा को देखना होगा। उनका प्रमुख सिद्धांत अहिंसा, बिना हिंसा के विरोध करने की नीति, जो सामाजिक बदलाव का नैतिक आधार बनती है है, जो आज भी कई सामाजिक आंदोलनों को प्रेरित करता है।

गांधी जयंती के प्रमुख आयाम

गांधी जयंती केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक विचारधारा का बिंदु है। यह स्वतंत्रता आंदोलन के कई महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ी है – जैसे 1930 का नमक सत्याग्रह, जहाँ जनता ने ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ असहयोग किया। इसी क्रम में स्वदेशी आंदोलन, स्थानीय वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देने वाला आर्थिक पहल उभरा, जिसने भारतीय उद्योग को मजबूत किया और विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता घटाई। गांधी जी ने इन आंदोलनों को निष्पक्षता, साधुता और सामुदायिक सहयोग के साथ आगे बढ़ाया, जिससे जनता में राष्ट्रीय जागरूकता का विकास हुआ। आज के डिजिटल युग में भी इन सिद्धांतों को सामाजिक मीडिया पर जागरूकता अभियानों, शांति उपायों और पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में लागू किया जाता है।

गांधी जयंती पर स्कूल, कॉलेज और सार्वजनिक उद्यानों में अक्सर विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं – जैसे स्मरण सभाएँ, निबंध प्रतियोगिताएँ और व्याख्यान। इन कार्यक्रमों में महात्मा गांधी के जीवन के महत्वपूर्ण चरण – उनके दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष, भारत लौटकर असहयोग आंदोलन, और अंत में 1948 में उनका दुखद निधन – को समझाया जाता है। इन पहलुओं को सीखते हुए युवा वर्ग को अहिंसात्मक प्रतिरोध और नैतिक नेतृत्व की दिशा में प्रेरित किया जाता है। इस तरह के शैक्षिक प्रयास राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करते हैं और भावी पीढ़ी को सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास कराते हैं।

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