ग्लास उद्योग – क्या है चल रहा नया ट्रेंड?

क्या आपको पता है कि भारत में कांच बना रहे कारखाने पिछले पाँच सालों में 30% ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं? यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि उद्योग में नई तकनीकें और बढ़ता निर्यात का संकेत है। चलिए देखते हैं कि इस बढ़ोतरी के पीछे क्या कारण हैं और आगे क्या संभावनाएँ हैं।

भारत में ग्लास उत्पादन की मुख्य बातें

सबसे पहले तो यह समझें कि कांच प्रोडक्शन दो बड़े सेक्टर में बँटा है – निर्माण‑स्वतंत्र (फ़्लैट ग्लास) और औद्योगिक (टेम्पर्ड, लिक्विड) कांच। आजकल बड़े शहरों के आसपास स्थापित फ़्लैट ग्लास यूनिट्स, जैसे अहमदाबाद और चंदीगढ़, रीयल एस्टेट बूम से सीधे जुड़ी हैं। इनके कारण मोटी दीवारें, ऊर्जा‑सहेज ब्लाइंड्स और सौर पैनल बैकिंग में कांच की मांग तेज़ी से बढ़ी है।

औद्योगिक कांच की बात करें तो ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और इलेक्ट्रॉनिक्स में टेम्पर्ड या कोटेड ग्लास की ज़रूरत बढ़ी है। नई कार मॉडल में हल्के, मगर मजबूत ग्लास का प्रयोग कर सुरक्षा मानकों को पूरा किया जा रहा है। यही कारण है कि भारतीय कंपनियां अब अपने रिसर्च‑डिवीज़न में लेज़र कटिंग और सोलर कंट्रोल तकनीक पर काम कर रही हैं।

मुख्य चुनौतियाँ और समाधान

बिजली की लागत और कच्चे माल की कीमतें अभी भी बड़ी चुनौतियों में से हैं। लेकिन कई कारखानों ने ऊर्जा‑संचित फर्नेस और रीसाइक्लिंग प्रॉसेस अपनाकर खर्च कम किया है। कांच रीसाइक्लिंग का लाभ यह है कि एक टन कांच को फिर से पिघलाने में ऊर्जा बचत लगभग 30% होती है। सरकार भी रीसाइक्लिंग प्लांट्स को टैक्स रिवेज़ दे रही है, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ रहा है।

एक और बात जो अक्सर छूट जाती है, वह है स्किल्ड लेबर की कमी। अब कई एंटरप्राइज़ तकनीकी इंटर्नशिप और डिप्लोमा कोर्स शुरू कर चुके हैं, ताकि युवा वर्ग को फोरोसाइटिक प्रोसेसिंग और क्वालिटी कंट्रोल में प्रशिक्षित किया जा सके। इससे न केवल रोजगार बढ़ेगा, बल्कि उत्पाद की क्वालिटी भी सुधरेगी।

भविष्य की बात करें तो भारतीय ग्लास उद्योग 2028 तक निर्यात में 15% की बढ़ोतरी का लक्ष्य रख रहा है। खासकर मध्य पूर्व और अफ्रीका के बाजारों में कांच की मांग बढ़ रही है, जहाँ बुनियादी ढाँचे की नींव अभी बन रही है। यदि उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हुए कच्चे माल की सोर्सिंग को लोकल बनाते हैं, तो भारतीय ग्लास उद्योग को विश्व स्तर पर एक मजबूत खिलाड़ी कहा जा सकता है।

तो, यदि आप ग्लास उद्योग में निवेश या करियर की सोच रहे हैं, तो अभी का टाइम सबसे अच्छा है। नवीनतम तकनीकों, सरकारी प्रोत्साहन और बढ़ती बाजार मांग मिलकर इस सेक्टर को आकर्षक बना रहे हैं। याद रखें, हर बड़ी रिफॉर्म के पीछे छोटे‑छोटे कदम होते हैं – जैसे ऊर्जा‑संचित फर्नेस लगाना या रिसाइक्लिंग यूनिट शुरू करना। ये छोटे‑छोटे कदम ही बड़े बदलाव की नींव बनते हैं।

आशा है कि इस लेख ने आपको ग्लास उद्योग की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर एक स्पष्ट तस्वीर दी होगी। आगे भी अल्टस संस्थान पर ऐसी ही ताज़ा ख़बरें और गहरी जानकारी मिलती रहेगी।

ICG 2025 कोलकाता: भारत की तकनीक-चालित छलांग और ग्लास की नई भूमिका

कोलकाता में XXVII इंटरनेशनल कांग्रेस ऑन ग्लास (ICG) 2025 का उद्घाटन करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अब तकनीक में राह दिखा रहा है। 20-24 जनवरी तक चलने वाले इस सम्मेलन में 550 से ज्यादा प्रतिनिधि, जिनमें 150 अंतरराष्ट्रीय शामिल हैं, भाग ले रहे हैं। उन्होंने ग्लास को अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, रक्षा और ऑप्टिक्स में निर्णायक बताया और अकादमी-उद्योग साझेदारी पर जोर दिया।