इलेक्ट्रिक वाहन: आज की जरूरी खबरें और उपयोगी गाइड

इलेक्ट्रिक कारों का चलना अब सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित नहीं रहा. हर दिन नई मॉडल, नई तकनीक और नई सरकारी योजना सामने आती है. अगर आप भी ईवी के बारे में जानकारी चाहते हैं तो यहाँ सही जगह पर आए हैं.

नवीनतम ईवी समाचार

पिछले हफ़्ते टेस्ला ने भारत में अपना पहला सुपरचार्जर स्टेशन खोलने की घोषणा की. इस कदम से बड़े शहरों के बाहर भी ईवी ड्राइवर जल्दी चार्ज कर पाएंगे. इसी बीच भारतीय ऑटोメーカー मारुति ने किफायती इलेक्ट्रिक सिडी मॉडल लॉन्च किया, जिसका प्राइस 6 लाख रुपये से शुरू है.

सरकार भी इस दिशा में आगे बढ़ रही है. अप्रैल 2025 से सभी नई पर्सनल कैर और दोपहिया वाहनों पर टैक्स छूट दी जाएगी, बशर्ते वे 300 किलोमीटर की रेंज से कम नहीं हों. यह योजना उन लोगों के लिए खास मददगार होगी जो रोज़मर्रा की यात्रा में ईवी इस्तेमाल करना चाहते हैं.

ईवी खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें

पहली बात, बैटरी लाइफ देखिए. आजकल लीथियम‑आयन बैटरियों का जीवन 8‑10 साल या 150,000 किलोमीटर तक रहता है. यदि आप अक्सर लंबी दूरी ड्राइव करते हैं तो ऐसी बैटरी चुनें जो तेज़ चार्जिंग सपोर्ट करे.

दूसरा पहलू – चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर. अपने घर के पास या ऑफिस में सार्वजनिक चार्जर की उपलब्धता जांचें. अगर आपके क्षेत्र में कम स्टेशन हैं, तो भविष्य में समस्या हो सकती है.

तीसरी बात, कुल लागत। ईवी की कीमत पहले से अधिक लग सकती है, पर रख‑रखाव और फ़्यूल बचत को जोड़कर देखिए तो कई सालों में खर्च घटता दिखेगा. सरकारी सब्सिडी, लोएन या टैक्स छूट भी आपके बजट में फर्क डाल सकते हैं.

आखिरी टिप – टेस्ट ड्राइव जरूर करें. हर मॉडल की राइड क्वालिटी अलग होती है; कुछ में रिवर्सिंग असिस्टेंट अच्छा होता है जबकि कुछ में इंटीरियर स्पेस बड़ा. खुद अनुभव करके ही आप सही चुनाव कर पाएंगे.

इन बिंदुओं को याद रखकर आप न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि अपनी जेब के लिये भी समझदार फैसला ले सकते हैं. अगर आपके पास कोई सवाल या नई खबर है, तो नीचे कमेंट में बताइए – हम जल्द अपडेट करेंगे.

यूरोप ने चीन में निर्मित टेस्ला वाहनों के लिए शुल्क में भारी कटौती की

यूरोपीय आयोग ने चीन से आयातित टेस्ला वाहनों पर प्रस्तावित टैरिफ को 21 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत करने की योजना की घोषणा की है। यह निर्णय चीनी प्रतिस्पर्धियों की तुलना में टेस्ला को कम सरकारी सब्सिडी मिलने के कारण लिया गया है। इस कदम का उद्देश्य यूरोपीय निर्माताओं को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाना है।